आपने ' थ्रुवस्वामिनी' नाटक में कथावस्तु के आरंभ, विकास तथा परिणति के तीन चरणों द्वारा कथा को समझा है। अब हम इस बात की चर्चा करेंगे कि कथानक को नाटक के रूप में किस प्रकार प्रस्तुत किया गया हे।
अंक-दृश्य योजना
नाटक के तीनों अंकों में केवल एक-एक दृश्य है। प्रत्येक अंक में जिन समस्याओं को उठाया गया है उनका समाधान भी अंक की समाप्ति पर मिल जाता हे।
दृश्य और सूच्य घटनाएँ
कथानक में दृश्य ओर सूच्य घटनाओं का नियोजन कुशलता से किया गया हे। प्रमुख सूच्य घटनाएँ दो हैं-पहली शकदूत का सन्धि प्रस्ताव लेकर आना तथा दूसरी रामगुप्त के आदेश से कोमा, मिहिरदेव तथा शक सैनिकों की हत्या। इन घटनाओं को दृश्य रूप में दिखाने में अधिक समय और साधन लगाने पड़ते।
आधिकारिक और प्रासंगिक कथावलस्तु
नाटक में आधिकारिक कथासूत्रों तथा प्रासंगिक कथावस्तु को इस प्रकार जोड़ा गया है कि दोनों एक हो गये हैं। कोमा का प्रासंगिक कथासूत्र मूल कथा से अलग होते हुए भी उसका अंग है। थ्रुवस्वामिनी अपने प्रति हो रहे अपमान का दूृढ़तापूर्वक विरोध करती है। वह अपनी मुक्ति का मार्ग तलाशती है, परन्तु कोमा अपना मार्ग खोज नहीं पाती हेै।
विविध नाटकीय युक्तियों का प्रयोग
कथा में रोचकता और निरन्तरता बनाये रखने के लिए लेखक नाटकीय व्यंग्य, विडम्बना, आकस्मिक मोड़, तथा घात-प्रतिघात से कथा का विकास आदि युक्क्तियों का सहारा लेता है। नाटकीय व्यंग्य तथा विडम्बना के उदाहरण हैं-कुबडे, बोने तथा हिजडे के प्रसंग।
संकलन-दत्रय
पश्चिमी नाटकों की एक रूढि होती थी। संकलन-त्रय। संकलन-त्रय का अर्थ है स्थान, समय तथा कार्य की एकता। शेक्सपियर के नाटकों में भी समय और स्थान की विविधता देखने को मिलती हे।
कथावस्तु के विकास की परंपरागत प्रविधियाँ
प्राचीन नाटकों में कथावस्तु के विकास तथा नियोजन के लिए कार्यावसस््थाओं , प्रवृत्तियों तथा सन्धियों की योजना बनाई जाती थी। ध्रुवस्वामिनी नाटक में भी ये विशेषताएं विद्यमान हें।
कार्य-व्यापार की तीव्रता और आद्योपांत संघर्ष
' ध्रुवस्वामिनी' नाटक में शुरू से अंत तक कार्य-व्यापार बड़ी तीव्रता से चलता हे। कार्य-व्यापार में कहीं भी ठहराव नहीं आता है। घटनाएं लगातार आती रहती हें। कार्य-व्यापार की सक्रियता आरंभ से अंत तक चलती है। नाटक में द्वंद्व को विषय स्थितियों के माध्यम से प्रभावपूर्ण बनाया गया है।
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